Hindi Poetry
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गुनगुनी धूप महकती शामों में लिखना
आँखों के जल या लबों के हर पल में लिखना
बीती हुई रात या आने वाले कल में लिखना
कभी सूरज की गर्मी या मौसम की नरमी में लिखना
लिख पाओ तो अक्स मेरा बिखरी हुई जमीन पर लिखना
अपनी कलम स्याह या मंजिल की राह पर लिखना
लब्ज़ अधूरे पड़े तो अपने मन के सार में लिखना
बेखबर होकर मुझे तुम हर बात में लिखना।
-Lakshmi
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कहाँ कुछ बदला है
आसमां से ताकता तू भी है
जमीन से निहारती मैं भी हूँ
मैं बांसुरी की धुन सी अधूरी
तो मेरे बिन तू भी नहीं पूरा
तू उस जहां का महताब ही सही
मैं इस जहां की धूल ही सही
आग से अगर रौशनी तेरी
तो श्मशान में पड़ी राख मैं भी नहीं।
-Lakshmi
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सागर की एक बूँद सा पी लो मुझे
जीवन की साँस सा जी लो मुझे
कण-कण में बसती सी धूप हूँ मैं
फूलों की पंखुड़ियों में
रास्तों की पगडंडियों में
पंक्षियों की चहचहाट में
पतियों की सरसराहट में
अंजुली भर जल में
आने वाले कल में
पल-पल बिखरती हुई हवा हूँ मैं
फ़िज़ा की लताओं में
उलझे हुए बालों में
महकी सी शाम में
भूले हुए नाम में
रोती हुई आँखों में
थम सी गयी सांसों में
पी लो मुझे सूरज के ताप जैसा
जी लो मुझे रात के ख़्वाब जैसा।
-Lakshmi
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ख़ामोशी से तेरे पास सब कुछ कहना है
तेरे बाँहों की माला में अब मुझे रहना है
दर बदर भागती हुई फिजा हूँ मैं
तेरे रूह की काया में अब मुझे बसना है
मुक़म्मल खुदा की रोशनी में बहना है
चलते-चलते फिर कहीं ठरना है
गुजरे हुए लम्हों का साया हूँ मैं
ढलती हुई रात को भूल कर सुबह में महकना है
बिन कहे जिंदगी की जद में रहना है
मुश्किल राह पर दरिया से चलना है
अरदास के कशिश की सजा हूँ मैं
फूलों की सेज़ पर काँटों को सहना है।
-Lakshmi
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संग तेरे कुछ लम्हे बुनने थे
ज़ज़्बात तेरे कुछ यूँ सुनने थे
किस्से कहानियां दोहरानी थी
सुलझा लूँ तुझे वो बात पुरानी थी।
-Lakshmi
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लिखा जो तेरे नाम वो ख़त आख़री था
कहने को तुझसे अभी बहुत कुछ बाकी था
हाथों की वो उलझी लकीरें तुझे दिखानी थी
मंजूर नही मुझे तेरी ये अधूरी कहानी थी
-Lakshmi
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मैं वाकिफ़ नही तुमसे , तुम कौन हो ?
नज़र कुछ पहचानी सी है
सबब भी कुछ जान पड़ता है
मुख पर ख़ामोशी लिए तुम मौन हो
मैं वाकिफ़ नही तुमसे, तुम कौन हो ?
चेहरों को पढ़ना मुझे नही आता
पर शब्दों का मोल बख़ूबी जानती हूँ
मन मेरा जानकर,तुम अब भी मौन हो
मैं वाकिफ़ नही तुमसे , तुम कौन हो ?
-Lakshmi
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कभी रूठ जाऊँ तो मनाना मत
कभी टूट जाऊँ तो संभालना मत
इश्क़ ग़र कम पड़े तो बताना मत
बस चुपके से बाहें सहलाके चले जाना
सुन न पाउंगी मैं इश्क़ अधूरा था मेरा
बिखरे उन लम्हों को संग तुम ले जाना मत
कदम तुमनेे बढ़ाये पर रास्ता था मेरा
उसी राह से फिर कभी लौट के तुम आना मत
-Lakshmi
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